श्रम की असीमित पूर्ति का लुईस मॉडल।श्रम की असीमित आपूर्ति से क्या तात्पर्य है ? Lewis Model Of Unlimited Supply Of Labor.
Lewis Model Of Unlimited Supply Of Labor: (Lewis Model):- प्रो० आर्थर लुईस ने अल्पविकसित देशों के विकास से सम्बंधित अपना मॉडल अपने एक लेख “Economic Development with unlimited supply of Labour” (1954) द मानचेस्टर स्कूल नामक पत्रिका मे प्रकाशन करवाया। उसके पश्चात यह मॉडल “Economics of underdevelopment” नामक पुस्तक मे पुनः प्रकाशित हुआ।
इस मॉडल मे लुईस ने यह स्पष्ट किया कि अल्पविकसित देशो की मुख्य समस्या छिपी बेरोजगारी होती है। छिपी बेरोजगारी वह स्थिति है ” जिसमे किसी कार्य को करने के लिए जितने साधनों की आवश्यकता होती है। उससे अधिक साधन काम पर लगे होते हैं”। यदि इन फालतू साधनो को काम से हटा दिया तो कुल उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अपने मॉडल मे लुईस ने यह स्पष्ट किया कि यदि अल्पविकसित देश इन छिपे बेरोजगारों का प्रयोग पूंजी निर्माण की प्रक्रिया मे करे तो इन देशो का आर्थिक विकास हो सकता है। लुईस का मॉडल निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है।
श्रम की असीमित पूर्ति का लुईस मॉडल – मान्यताएँ (Assumptions):-
- 1. अर्थव्यवस्था मे दो क्षेत्र होते है – प्राथमिक / कृषि क्षेत्र जिसे जीवन-निर्वाह क्षेत्र भी कहा जाता है तथा पूंजीवादी या औद्योगिक क्षेत्र।
- 2. प्राथमिक क्षेत्र मे श्रम की असीमित पूर्ति होती है तथा बहुत अधिक छिपी बेरोजगारी पाई जाती है।
- 3. प्राथमिक क्षेत्र मे लोगो को जीवन – निर्वाह मजदूरी दी जाती है तथा इस मजदूरी दर पर श्रमिको की पूर्ति पूर्णतया लोचदार होती है।
- 4. पूंजीवाद क्षेत्र में मजदूरी की दर प्राथमिक दूरी की दर से अधिक होती है। जिसके कारण पूंजीवादी क्षेत्र मे बचत प्राथमिक क्षेत्र की तुलना मे अधिक होती है।
- 5. आर्थिक विकास – पूँजी की मात्रा व प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करता है जो अल्पविकसित देशों में पर्याप्त मात्रा में विदयमान है।
- 6. अर्थव्यवस्था मे साख सुविधाऐं प्रदान करने वाली वितीय संस्थाएं उपलब्ध है।
- 7. सरकार निवेश व करों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है।
Balanced Development – Definition of Balanced Growth Theory
उपरोक्त मान्यताओं के आधार पर लुईस मॉडल व्याख्या निम्न प्रकार से की जा सकती है-
श्रम की असीमित पूर्ति का लुईस मॉडल की व्याख्या :-
श्रम की असीमित पूर्ति का लुईस मॉडल: प्रो० लुईस के अनुसार अल्पविकसित देशों में श्रम की, असीमित पूर्ति होने के कारण छिपी बेरोजगारी की समस्या पाई जाती है। लुईस ने इस समस्या को समाप्त करके अर्थव्यवस्था को विकास के मार्ग मे लाने के संबंध में अपने सुझाव दिये है। उनके अनुसार एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था दोहरी अर्थव्यवस्था होती है।
जिसमे दो क्षेत्र पाए जाते है –
- प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector ):-
प्राथमिक क्षेत्र को जीवन निर्वाह क्षेत्र भी कहा जाता है। इस क्षेत्र मे छिपी बेरोजगारी पाई जाती है। श्रमिको की सीमांत उत्पादकता कम होती हैं, मजदूरी की दर कम होती है तथा उत्पादन की तकनीक पिछड़ी हुई होती है। - पूंजीवादी क्षेत्र (Capitalistic Sector) :-
इस क्षेत्र मे बचत श्रमिको की सीमांत उत्पादकता, आय का स्तर, पूंजी निर्माण की दर प्राथमिक क्षेत्र की तुलना में अधिक होती है तथा श्रमिको को जीवन – निर्वाह स्तर से बहुत अधिक मजदूरी दी जाती है।
Luci’s model of unlimited labor supply व्याख्या
लुईस ने छिपी बेरोजगारी की समस्या को सुलझाने के लिए यह सुझाव दिया कि प्राथमिक क्षेत्र के बेरोजगार श्रमिको को पूँजीवादी क्षेत्र मे रोजगार दिया जाना चाहिए।
इनके अनुसार ये छिपे -बेरोजगार जीवन निर्वाह क्षेत्र से कुछ अधिक तथा पूंजीवादी मजदूरी से कुछ कम मजदूरी की दर पर काम करने के लिए तैयार हो जाऐंगे। इसके फलस्वरूप पूंजीवादी क्षेत्र के उद्यमियों को कुछ बचत प्राप्त होगी। क्योंकि वे श्रमिकों को उनकी सीमांत उत्पादकता की तुलना में कम मजदूरी देंगे। इस बचत को लुईस ने पूँजीवादी आधिक्य (Capitallastic Surplus) कहा है।
इस पूंजीवादी आधिक्य को निवेश करने में पूंजी निर्माण होगा। जिससे पूंजीवादी क्षेत्र मे श्रमिकों की मांग बढेगी। इससे प्राथमिक क्षेत्र के छिपे बेरोजगार पूँजीवादी क्षेत्र की और स्थानातरित होंगे। जिसके फलस्वरूप पूंजीवादी आधिक्य मे ओर अधिक वृद्धि होगी। जिसे निवेश करने पर अर्थव्यवस्था विकास के मार्ग पर आ जाएगी। विकास की प्रक्रिया को निम्न चित्र के द्वारा दर्शाया जा सकता है:-

व्याख्या :-
चित्रानुसार मान लीजिए प्रारंभिक अवस्था मे OM श्रमिकों को प्राथमिक क्षेत्र से पूंजीवादी क्षेत्र मे स्थानांतरित किया जाता है। उन्हें OWBM के बराबर मजदूरी दी जाती है परन्तु इन श्रमिको की सीमांत उत्पादकता OABM है। अत: पूंजीपतियों को WAB(OABM – OWBH) के बराबर पूँजीवादी आधिक्य प्राप्त होगा। जिसे निवेश करने से पूँजी निर्माण की दर मे वृद्धि होगी जिससे श्रमिको की ‘मांग और अधिक बढेगी तथा MN अतिरिक्त श्रमिकों का हस्तांतरण प्राथमिक क्षेत्र से पूँजीवादी क्षेत्र की ओर होगा।
अत: अब कुल ON श्रमिकों को पूँजीवादी क्षेत्र मे रोजगार मिलेगा। इन श्रमिकों को OWON के बराबर मजदूरी दी जाएगी । जबकि इनकी सीमांत उत्पादकता OCON होगी। अत: पूंजीपतियों को WCD (OCDN – OWDN) के बराबर पूंजीवादी आदित्य होगा। जिसे निवेश करने से पूँजीनिर्माण की दर मे ओर अधिक वृद्धि होगी तथा और अधिक श्रमिको का स्थानांतरण प्राथमिक क्षेत्र से पूँजीवादी क्षेत्र मे होगा। यह प्रक्रिया चलती रहेगी तथा अर्थव्यवस्था विकास के मार्ग पर आ जाएगी।
श्रम की असीमित पूर्ति का लुईस मॉडल – आर्थिक विकास का रुकना
अब प्रश्न यह होता है कि आर्थिक विकास कि यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहेंगी या रूक जाऐगी। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए लुईस यह स्पष्ट करता है कि विकास की यह प्रक्रिया निरन्तर नही चलती बलकि कई कारणों से रुक जाती है –
1. विकास होने के कारण जब छिपी बेरोजगारी समाप्त हो जाती है तथा श्रमिकों की मांग बढ़ने के कारण मजदूरी की दर बढ़ जाती है जिससे पूँजीवादी आधिक्य समाप्त हो जाता है जिससे पूँजी निर्माण की दर कम हो जाती है। तथा आर्थिक विकास रुक जाता है।
2. विकास होने पर प्राथमिक क्षेत्र मे आधुनिक तकनीक अपनाई जाती है जिससे सीमांत उत्पादकता बढ़ने लगती हैं तथा श्रमिक पूँजीवादी क्षेत्र मे स्थानांतरित होने के लिए अधिक मज़दूरी की मांग करते है जिससे पूंजीवादी आधिक्य समाप्त हो जाता है तथा आर्थिक विकास की प्रक्रिया रुक जाती है।
3. पूंजीवादी क्षेत्र मे मजदूरी की दर बढने से प्रेरित होकर प्राथमिक क्षेत्र के श्रमिक भी ओर अधिक मजदूरी की मांग करते है। अतः श्रम संगठनों के दवाब के कारण प्राथमिक क्षेत्र मे भी मजदूरी की दर बढ़ानी पड़ती है। जिससे पूंजीवादी क्षेत्र मे पूँजीवादी आधिक्य कम हो जाता है, जिससे निवेश की दर कम हो जाती है। तथा विकास की प्रक्रिया रुक जाती हैं ।
विकास की प्रक्रिया को बनाए रखना एवं लुईस मॉडल की विशेषताएं।
लुईस के अनुसार पूँजीवादी आधिक्य के समाप्त होने के कारण जब उद्यमियों के लाभ कम हो जाते है तथा विकास की प्रक्रिया रुक जाती है तो इस प्रक्रिया को निम्न प्रकार से जारी रखा जा सकता है-
बैंक साख द्वारा पूँजीनिर्माण –
लुईस के अनुसार यदि पूंजी निर्माण की दर कम होती है तो निवेशक बैंकों से साख प्राप्त करके पूंजी निर्माण की पुक्रिया को जारी रख सकते है। इस स्थिति मे ऐसा संभव है कि देश मे घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाई जाए ! इससे मुद्रा स्फीति की दर बढ़ेगी। परन्तु जैसे – जैसे विकास के फलस्वरूप देश मे उत्पादन बढ़ेगा। तो मुद्रा स्फीति स्वय/ सवयम् भी समाप्त हो जाएगी तथा विकास तेजी से होने लगेगा।श्रमिकों का प्रवास :-
लुईस के अनुसार यदि देश के स्थानीय श्रमिक अधिक मजदूरी की मांग करते हैं तो उन क्षेत्रो, से श्रमिको का प्रवास करना चाहिए जो अत्यधिक पिछड़े हुए हो। ये श्रमिक कम मजदूरी की दर पर भी काम करने को तैयार होगे । जिसके फलस्वरूप पूंजीपतियों को फिर से पूजीवादी आधिक्य प्राप्त होगा तथा पूँजी निर्माण बढ़ने से विकास होगा !पूंजी का निर्यात :-
लुईस के अनुसार विकास की प्रक्रिया को बनाए रखने का एक अन्य उपाय यह है कि देश की पूंजी का निर्यात अन्य देशों मे किया जाए। जिसके फलस्वरूप देश मे पूंजी की कमी हो जाएगी तथा श्रमिकों की मांग कम हो जाएगी तथा श्रमिक कम मजदूरी की दर पर भी काम करने के लिए तैयार हो जाएगें तथा पूंजीपतियों को पूंजीवादी आधिक्य प्राप्त होगा जिसे निवेश करने पर आर्थिक विकास होगा।
लुईस मॉडल की आलोचनाएँ :- Criticisms of Lewis Model
- सीमित क्षेत्र ।
- श्रम की गतिशीलता आसान नही होती ।
- स्थिर जीवन-निर्वाह मजदूरी सम्भूत नही है।
- कुशल श्रमिको की कमी ।
- उद्यमियों का अभाव ।
- निवेश गुणक का क्रियाशील न होना ।
- धन की असमानता।
- कुल मांग की अवहेलना ।
- एकपाजीय सिद्धांत।
- अकुशल कर प्रशासन।
संतुलित विकास सिद्धांत – संतुलित विकास सिद्धांत की व्याख्या
असंतुलित विकास (Unbalanced Growth) – असंतुलित-विकास सिद्धांत
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