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संतुलित विकास सिद्धांत – संतुलित विकास सिद्धांत की व्याख्या

संतुलित विकास क्या है? संतुलित विकास संबंधी रोडान के विचार। संतुलित विकास संबंधी लुईस का दृष्टिकोण। नर्कसे के अनुसार संतुलित विकास सिद्धांत की व्याख्या। संतुलित विकास व असंतुलित विकास में अंतर।

Balanced Growth Theory Read in English

संतुलित विकास :- अल्पविकसित देशों में आर्थिक विकास से संबंधित संतुलित विकास सिद्धांत का प्रतिपादन सर्वप्रथम “फ्रेडरिक लिस्ट” ने किया था ! उसके पश्चात प्रो॰ आर्थर यंग ने तथा रोजस्तीन रोडान ने अपने एक लेख ‘Problems of Industrialization of Eastern and South Eastern Europe’ में किया ! इसके पश्चात कई अन्य अर्थशास्त्रियों जैसे नर्कस तथा लूईस आदि ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया ! संतुलित विकास का अर्थ है अर्थव्यवस्था के विभिन्न संबंधित क्षेत्रों में एक साथ निवेश किया जाना चाहिए ताकि सभी क्षेत्रों का एक साथ विकास हो ! इस सिद्धांत के संबंध के अनुसार अर्थव्यवस्था का विकास तभी हो सकता है यदि निर्धनत के दुशचक्र संबंधित दोनों पक्षों का समाधान किया जाए ! निर्धनता के दुशचक्र से संबंधित दो पक्ष निम्नलिखित हैं :-

  • (1) मांग पक्ष :-
    इसके अनुसार अल्पविकसित देशों में आय कम होने के कारण लोगों के पास क्रय शक्ति कम होती है ! इससे मांग कम होती है ! अतः इन देशों में मांग को बढ़ाना अति आवश्यक होता है ! संतुलित विकास के समर्थकों के अनुसार यदि किसी एक क्षेत्र में ही निवेश किया जाता है तो इससे पूरी अर्थव्यवस्था का विकास नहीं हो पाएगा ! परंतु यदि विभिन्न क्षेत्रों में एक साथ निवेश किया जाता है तो ये क्षेत्र एक-दूसरे के उत्पादन को मांग प्रदान करेंगे ! जिससे सभी क्षेत्रों का विकास होने लगेगा !
  • (2) पूर्ति पक्ष :-
    पूर्ति पक्ष के अनुसार अल्पविकसित देशों में आय कम होने के कारण बचत कम हो सकती है ! जिससे निवेश, उत्पादन, रोजगार का स्तर भी कम होता है ! अतः आवश्यक है कि विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में ऐसी परिस्थितियॉं उत्पन्न की जाए जिससे बचत में वृद्धि हो ! इससे निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा तथा अर्थव्यवस्था में कुल पूर्ति में वृद्धि होगी ! इसके लिए आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों , कृषि , उद्योग आदि का एक साथ विकास किया जाए !
    इस प्रकार उत्पादन के मांग पक्ष व ‌पूर्ति पक्ष ये दोनों का विकास करने के लिए संतुलित विकास की नीति अधिक कारगर पर साबित होती है !

संतुलित विकास सिद्धांत : संतुलित विकास संबंधी रोडान के विचार :-

संतुलित विकास सिद्धांत

रोजन्स्टोन रोडान के अनुसार संतुलित विकास की नीति अपनाने से अर्थव्यवस्था में तीन प्रकार की अविभाज्यताएं उत्पन्न होती है :-

  • उत्पादन फलन या SOC संबंधी अविभाज्यताएं :-
    रोडान के अनुसार अल्पविकसित देशों में किसी भी प्रकार के उत्पादन को बढ़ाने के लिए समाजिक उपरि पूंजी की आवश्यकता पड़ती है ! इसके लिए कई क्रियाओं में निवेश करना पड़ता है ! जैसे – जैसे देश का विकास होता है तो सामाजिक उपरि पूंजी का प्रयोग बढ़ता चला जाता है ! इस प्रकार समाजिक उपरि पूंजी अविभाज्य है ! इस अविभाज्य के कारण उत्पन्न होने वाली बाहरी बचतों का लाभ उठाने के लिए यह आवश्यक है कि एक साथ कई क्षेत्रों में निवेश किया जाता है !
  • माँग की अविभाज्यताएँ :-
    इसका अर्थ है कि विभिन्न उद्योग एक- दूसरे के लिए मांग का निर्माण करते है। “यदि सभी उद्योगों में एक साथ निवेश नहीं किया जाता है तो मांग व पूर्ति बराबर न होने की संभावना होती है। अत: मांग की अविभान्यता के कारण अल्पविकसित देशों को कई क्षेत्रों में एक साथ निवेश करना पड़ता है।
  • बचत की पूर्ति में अविभाज्यता :-
    रोडान के अनुसार अल्पविकसित देशों में न्यूनतम मात्रा में निवेश करने के लिए भी बड़ी मात्रा में बचत की आवश्यकता होती है। इसके लिए बहुत अधिक आय की आवश्यकता होती है। इस आय को उत्पन्न करने के लिए अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में एक साथ निवेश करना आवश्यक होता है।
    इस प्रकार उत्पादन फलन मांग व बचत की पूर्ति संबंधी अविभाज्यता का लाभ उठाने के लिए संतुलित विकास की आवश्यक होती है।

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संतुलित विकास सिद्धांत संबंधी लुईस का दृष्टिकोण :-

लुईस ने संतुलित विकास के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए –

  • संतुलित विकास के आभाव में एक क्षेत्र में कीमतें दूसरे क्षेत्र की कीमतें की तुलना में अधिक हो सकती है। क्योंकि जिस क्षेत्र में पहले विकास होगा वहाँ उत्पादन अधिक होगा तथा उत्पादन की कीमत कम होगी ! इसके विपरीत अन्य क्षेत्रों में कीमतें अधिक होगी। संतुलित विकास की नीति अपनाने से सभी क्षेत्रों की तुलनात्मक कीमतों में समानता बनी रहती है तथा सभी क्षेत्रों का एक समान विकास होता है।
  • जब अर्थव्यवस्था का विकास होता है तो विभिन्न क्षेत्रों में कई प्रकार के अवरोध उत्पन्न होते है। जैसे आर्थिक विकास के साथ-साथ लोगों की आय में वृद्धि होती है जिससे वस्तुओं की मांग बढ़ती है। यदि इन वस्तुओं का उत्पादन नहीं बढ़ता तो अवरोध की स्थिति उत्पन्न सकती है इसलिए यह आवश्यक है कि सभी क्षेत्रों में एक साथ निवेश करके प्रत्येक प्रकार की वस्तु के उत्पादन में वृद्धि की जाए। जिससे अवरोध उत्पन्न न हो !

नर्कसे के अनुसार संतुलित विकास सिद्धांत की व्याख्या :-

नर्कसे ले अनुसार अल्पविकसित देशों की सबसे बड़ी समस्या निर्धनता का दुष्चक्र है। निर्धनता के दुष्चक्र के कारण एक ओर तो पूर्ति में तथा दूसरी ओर मांग में कमी आती है। क्योंकि आय में कमी होने के कारण एक ओर बचत कम होती है तथा दूसरी ओर क्रय शक्ति कम होती है। जिसके कारण निवेश व उत्पादन कम होता है तथा देश निर्धन ही रह जाता है। इस निर्धनता के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था के सभी संबंधित क्षेत्रों में एक-साथ निवेश किया जाए। नर्कसे ने संतुलित विकास की नीति अपनाने के संबंध में निम्नलिखित तर्क दिए है –

  • मांग की पूरकताएं :-
    नर्कसे के अनुसार यदि विकास की प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक ही उद्योग में निवेश किया जाता है तो उस उद्योग में उत्पादन तो होता है परंतु उत्पादन की मांग नहीं हो पाएगी (क्योंकि अन्य उद्योग पिछड़े हुए हैं)!
    अतः आवश्यकता है कि एक साथ कई प्रकार के उद्योगों की स्थापना की जाए क्योंकि विभिन्न उद्योग में लगे श्रमिक एक दूसरे के उद्योगों की क्योंकि वस्तुओं के ग्राहक बन जाएं जिससे मांग एवं पूर्ति बराबर हो जाए !
  • बाहरी बचतें :- नर्कसे के अनुसार संतुलित विकास के फलस्वरूप जब नए उद्योगों की स्थापना तथा वर्तमान उद्योगों का विस्तार होता है तो बाहरी बचतें उत्पन्न होती है। जिनके फलस्वरूप लागतें कम होती है। आर्थिक विकास की प्रक्रिया तेज होती है।
  • सरकार द्वारा हस्तक्षेप:-
    नर्कसे के अनुसार यदि अर्थव्यवस्था का निजी क्षेत्र बहुत कुशल हो तो सरकार को संतुलित विकास की नीति अपनाने के लिए हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार नर्कसे के अनुसार संतुलित विकास को लिए सरकार की अपेक्षा निजी क्षेत्र का अधिक योगदान होता है।

संतुलित विकास सिद्धांत

संतुलित विकास व असंतुलित विकास :-

  • असंतुलित विकास :-
    कुछ अर्थशास्त्रियों जैसे हिरशमैन, सिंगर, रोस्टोव, फ्लेमिंग आदि के अनुसार अल्पविकसित देशों में असंतुलित विकास की नीति अपनाई जाए। अर्थव्यवस्था को आर्थिक विकास के मार्ग पर ला सकते है !
    असंतुलित विकास का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था के कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में पहले निवेश किया जाए। जिससे ये क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में विकसित हो जाए तथा
    अर्थव्यवस्था में असंतुलन उत्पन्न हो जाएगा। इस असंतुलन को दूर करने के लिए अन्य क्षेत्रों में भी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा तथा अर्थव्यवस्था विकास के मार्ग पर आ जाएगी।
  • संतुलित विकास :-
    आर्थिक विकास के लिए अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों का एक साथ विकास करने से संबंधित संतुलित विकास के सिद्धांत का प्रतिपादन सबसे पहले फैडरिक लिस्ट ने किया।
    संतुलित विकास का अर्थ अर्थव्यवस्था के विभिन्न संबंधित क्षेत्रों में एक साथ निवेश किया जाना चाहिए।

असंतुलित विकास (Unbalanced Growth) – असंतुलित-विकास सिद्धांत

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